2020 -दिल्ली में प्रतिष्ठा की लड़ाई तो बिहार चुनाव से तय होगा गठबंधन

2020 -दिल्ली में प्रतिष्ठा की लड़ाई तो बिहार चुनाव से तय होगा गठबंधन
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दिल्ली विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है और इससे पहले 2019 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने केंद्र में सत्ता में वापसी कर पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाकर इतिहास रचा है। हालांकि, बाद में राज्य में हुए चुनावों में पार्टी को असफलताओं का सामना करना पड़ा क्योंकि यह महाराष्ट्र या झारखंड में सरकार नहीं बना सकी और हरियाणा में भी गठबंधन बनाने के बाद ही सरकार बना पाई है। 2020 में 2 प्रमुख विधानसभाओं के लिए चुनाव होने हैं जोकि भाजपा के लिए अग्रि परीक्षा होंगे। पहला दिल्ली विधानसभा का चुनाव जिसके लिए सोमवार को चुनावों की घोषणा हो गई है। ये चुनाव 8 फरवरी को होने हैं और 11 फरवरी को मतगणना होगी। भाजपा के लिए दिल्ली विधानसभा के चुनाव इसलिए भी प्रतिष्ठा की लड़ाई हैं क्योंकि यहां वह लगभग दो दशकों से सत्ता से बाहर है और दूसरी तरफ महाराष्ट्र और झारखंड में झटके के बाद बिहार में होने वाले चुनावों में अपने गठबंधन सहयोगियों को साथ लेकर चलने की भाजपा की क्षमता का एक महत्वपूर्ण परीक्षण होगा।
दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार काम कर रही है और भाजपा यहां अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। पार्टी को बिहार में महागठबंधन से भी महत्वपूर्ण चुनौती मिली है जिसमें मुख्य रूप से लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस शामिल हैं। बिहार पहला राज्य है, जहां 2014 में सत्ता में आने के बाद भाजपा हार गई थी, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में जनता दल (यू) के साथ हाथ मिलाने के बाद अब वह वहां से अवलंबित है। गठबंधन के सहयोगियों जद (यू) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का प्रबंधन भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। महाराष्ट्र में पूर्व सहयोगी शिवसेना के साथ असहमति और झारखंड में सहयोगी अखिल झारखंड छात्र संघ के टूटने पर सरकार बनाने में विफलता से भाजपा की चिंताएं बढ़ गई हैं। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘‘बिहार में भाजपा और जद(यू) के बीच गठबंधन अच्छी तरह काम कर रहा है। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य के लोगों और विकास के लिए काम किया है। हमें विश्वास है कि गठबंधन को एक बार फिर जनता का समर्थन मिलेगा जैसा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में हुआ था।’’पिछले हफ्ते, जद (यू) के प्रशांत किशोर और बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भाजपा के बीच युद्ध की स्थिति में आ गए, जिसकी शुरूआत नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और सी.ए.ए. से हुई और आगे सीट बंटवारे की ओर अग्रसर हुए। प्रशांत किशोर ने कहा कि जद (यू) को अधिक सीटों पर चुनाव लडऩा चाहिए लेकिन मोदी ने कहा कि दोनों दलों का शीर्ष नेतृत्व सीट बंटवारे के बारे में फैसला करेगा। भाजपा की सत्ता में दूसरी बार वापसी हुई है और आर्थिक मंदी के बीच 1 फरवरी को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण इस सरकार का पहला बजट पेश करेंगी। 2020 में राज्यसभा की 73 सीटों के लिए चुनाव होंगे। साल के अंत तक 69 सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो जाएगा, जिनमें 18 भाजपा के और 17 कांग्रेस के सदस्य शामिल हैं। 4 सीटें पहले से ही खाली हैं। देशभर में एन.पी.आर. और सी.ए.ए. का विरोध और समर्थन हो रहा है। इसका चुनावों पर असर पडऩा लाजिमी है। नई दिल्ली के एक राजनीतिक विश्लेषक सुब्रत मुखर्जी ने कहा, ‘‘दिल्ली में केजरीवाल काफी मजबूत स्थिति में हैं और भाजपा का मुख्य उद्देश्य अपनी स्थिति को सुधारना होगा। बिहार एक कठिन लड़ाई होगी और भाजपा सहित किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए वॉकओवर नहीं होगा। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में पहले से ही बहुत अधिक सेंध है और भाजपा की मुश्किलें इस आधार पर बढ़ सकती हैं कि वह जद (यू) को कितनी सीटें देगी, जो अपनी उपस्थिति को अधिकतम करने के लिए भी देखेगा।’’ देश के हिंदी भाषी क्षेत्र में अपना राजनीतिक प्रभुत्व बनाए रखना बिहार भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि राष्ट्रीय राजधानी में चुनाव के नतीजे भी महत्वपूर्ण होंगे और भाजपा के समक्ष मुख्य चुनौती केजरीवाल को एक मुख्यमंत्री के चेहरे और उनकी सरकार के विकास-समर्थक चुनावी पिच से मुकाबला करने की होगी। भाजपा दिल्ली की सभी 7 सीटें जीतने के अपने लोकसभा प्रदर्शन को दोहराना चाहेगी। भाजपा को पिछले विधानसभा चुनावों में इसी तरह की चुनौती का सामना करना पड़ा था, जहां यह राज्य की सभी लोकसभा सीटों को जीतने के लिए चुनावी दौड़ में शामिल हो गई थी, लेकिन लगभग 6 महीने बाद 2015 में जीत का क्रम बनाए रखने में विफल रही थी। भाजपा ने दिल्ली के लिए अपने अभियान की शुरूआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पिछले महीने राजधानी के रामलीला मैदान में एक रैली के रूप में की है, जिसमें 1,731 अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने के मुद्दे पर चुनाव के लिए पार्टी के अभियान का एक मुख्य आधार है।

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