उ.प्र. सबसे ज्यादा औसत बढ़ोत्तरी वाला राज्य, जनता के साथ अन्याय क्यों?
कोयले और कच्चे तेल में बढ़ोत्तरी के नाम पर उ.प्र. में बिजली दर बढ़ोत्तरी का पीटा गया ढिंढोरा, फिर दूसरे राज्यों में इसका असर क्यों नहीं जबकि पेट्रोल व कच्चे तेल की मार्केट सभी राज्यों के लिये एक। जहां आज से पूरे उ.प्र. में बढ़ी हुई बिजली दरें लागू हो गयी हैं, वहीं उपभोक्ता परिषद आज वह खुलासा करने जा रहा है जो सभी को सोचने पर मजबूर कर देगा। जब उ0प्र0 में बिजली दरों में व्यापक बढ़ोत्तरी प्रस्तावित की गयी तो यह ढिंढोरा पीटा गया कि कोयले व कच्चे तेल में बढ़ोत्तरी की वजह से बिजली दरें बढ़ानी पड़ रही हैं। सवाल यह उठता है कि कोयला और कच्चे तेल में बढ़ोत्तरी इतनी अधिक थी तो निश्चित तौर पर उसका प्रभाव पूरे देश में बिजली दरों पर पड़ना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। देश के लगभग 1 दर्जन राज्यों जहां पर वर्ष 2019-20 के लिये नयी बिजली दरें घोषित की गयी। उसको देखकर स्वतः अन्दाजा लग जायेगा कि उ0प्र0 में सबसे ज्यादा दरों में औसत वृद्धि की गयी। देश के अनेकों राज्यों में औसत वृद्धि स्वतः सबकी पोल खोल देगा। जबकि अन्य राज्यों मे वर्ष 2019-20 में औसत वृद्धि कर्नाटक 4.28 प्रतिशत,पंजाब 2.14 प्रतिशत,दिल्ली दरों में कमी हुई, उत्तराखण्ड 2.79 प्रतिशत,मध्यप्रदेश 7 प्रतिशत,उत्तर प्रदेश 12 प्रतिशत,आन्ध्र प्रदेश 0 प्रतिशत, उड़ीसा 0 प्रतिशत हरियाणा, गुजरात और बिहार 0 प्रतिशत वृद्धि की गई। उ.प्र. राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा ज्यादातर सभी राज्यों के बिजली वितरण निगमों ने बिजली दरों में व्यापक बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन राज्यों के नियामक आयोग द्वारा बिजली दरों में या तो नाम मात्र बढ़ोत्तरी की गयी या फिर बढ़ोत्तरी को खारिज कर दिया गया। लेकिन उ0प्र0 एक ऐसा राज्य है जहां पर विद्युत नियामक आयोग स्वतः मान रहा है कि प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का वर्ष 2017-18 तक उदय व ट्रूअप के अन्तर्गत लगभग 13337 करोड़ रू0 बिजली कम्पनियों पर निकल रहा है। इसके बावजूद भी उ0प्र0 में बिजली दरों में व्यापक बढ़ोत्तरी उ0प्र0 विद्युत नियामक आयोग द्वारा की गयी। जिसको लेकर पूरे देश में चर्चा हो रही है। ऐसे में अभी भी समय है उ0प्र0 सरकार को आगे आकर बिजली दरों में कमी की घोषणा करना चाहिए।