भारत तमाशाबीन क्यों बना हुआ है ?

भारत तमाशाबीन क्यों बना हुआ है ?
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सउदी अरब पर यमन के बागियों ने जो हमला किया है, उससे सारी दुनिया में खतरे की घंटियां बजने लगी हैं क्योंकि दुनिया के देशों को सबसे ज्यादा तेल देनेवाला देश यही है। इसके अबकैक और खुरैश नामक स्थानों पर ड्रोन विमानों से हमला हुआ है। सिर्फ एक-दो दिन में ही तेल की कीमतें 20-25 प्रतिशत बढ़ गई हैं। भारत अपने कुल तेल-आयात का 18 प्रतिशत सउदी अरब से खरीदता है। कोई आश्चर्य नहीं कि भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम 5 से 10 रु. प्रति लीटर बढ़ जाएं। अगर ऐसा हो गया तो पता नहीं हमारी अर्थव्यवस्था का क्या होगा ? मंहगाई बढ़ेगी। यदि सरकार तेल के दाम नहीं बढ़ाएगी तो उसका घाटा बढ़ेगा। बस, संतोष इसी बात का है कि सउदी अरब और अमेरिका, दोनों ने भरोसा दिलाया है कि भारत को जो ढाई करोड़ टन तेल हर वर्ष चाहिए, उसमें कोई कमी नहीं आने दी जाएगी। माना कि कमी नहीं होगी लेकिन तेल की बढ़ी हुई कीमतों के धक्के को हमारी अर्थव्यवस्था कैसे बर्दाश्त करेगी। अभी मामला सिर्फ एकतरफा हमले का ही है, कुछ पता नहीं कि अमेरिका और सउदी अरब क्या कर डालें। वे इस हमले की पूरा दोष ईरान पर मढ़ रहे हैं। उनके आसमानी फोटो उन्हें बता रहे हैं कि यह हमला यमन से नहीं, ईरान की दिशा से हुआ है। यह हमला हूती द्रोन से नहीं, ईरानी मिसाइलों से हुआ है। यमन के हूती बागियों को ईरान का समर्थन खुले-आम मिलता है लेकिन इस हमले की जिम्मेदारी ईरान ने बिल्कुल भी नहीं ली है। फिर भी यह असंभव नहीं कि डोनाल्ड ट्रंप ईरान पर हमला बोले दें या सउदी अरब को उस पर हमले के लिए उकसा दें। परमाणु-सौदे को लेकर अमेरिका और ईरान में पहले से ही तलवारें खिंची हुई है। ईरान ने अमेरिका को धमकी दे रखी है। उसने कह दिया है कि ईरान से 2000 किमी तक के किसी भी अमेरिकी सैनिक ठिकाने को उड़ाने की पूरी क्षमता ईरानी फौजों में है। रुस और चीन ने अमेरिका से सावधानी बरतने का अनुरोध किया है और भारत ने सउदी अरब पर हुए हवाई आक्रमण को आतंकवादी वारदात कहा है। जाहिर है कि मुस्लिम देशों के इस झगड़े में वह किसी का भी पक्षधर नहीं बन सकता, क्योंकि दोनों देशों से वह तेल आयात करता है और दोनों से उसके संबंध मधुर हैं। आश्चर्य तो इस बात का है कि वह फुटपाथ पर खड़ा तमाशाबीन बना हुआ है। वह अपने त्रिपक्षीय संबंधों के दम पर शांति वार्ता क्यों नहीं चलाता ? उसकी बात अमेरिका, सउदी अरब और ईरान- तीनों सुनेंगे। इनके बीच यदि युद्ध छिड़ गया तो उसकी लपटें भारत को भी झुलसाए बिना नहीं रहेंगी !

डॉ. वेदप्रताप वैदिक —

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