विपक्ष को नौटंकी भी नहीं आती
अनेक राजनीतिक विश्लेषकों ने इधर कांग्रेस पार्टी के भविष्य पर प्रकाश डाला है। उसे प्रकाश कहें या अंधकार ! उनका कहना है कि यदि सोनिया गांधी और राहुल नेता बने रहे तो कांग्रेस का खात्मा सुनिश्चित है। इन दोनों को और कांग्रेस को एक-दूसरे से अपना पिंड छुड़ाना चाहिए। खुले चुनाव करवाकर किसी भी अन्य दमदार नेता को नेतृत्व सौंप देना चाहिए। हरयाणा और महाराष्ट्र के चुनावों से यही संदेश उभरा है। यदि ऊपरी तौर पर देखें तो विश्लेषकों की यह बात व्यावहारिक मालूम पड़ती है लेकिन क्या सचमुच यह संभव है ?
पहली बात तो यह है कि कांग्रेस में लगभग बराबरी के दर्जनों प्रांतीय नेता हैं। लगभग आधा दर्जन तो मुख्यमंत्री ही हैं। यदि सोनिया और राहुल हटने का संकल्प कर लें तो वे सब आपस में लड़ मरेंगे। सभी जानते हैं कि उनकी हैसियत घरेलू नौकरों जैसी है। इस हैसियत को सब प्रेम से स्वीकार करते हैं। अब इन्हीं में से किसी एक को मालिक का रुतबा देने को कौन तैयार होगा ? दुर्भाग्य यह है कि देश की अन्य पार्टियां भी कांग्रेस की कार्बन कापियां बनती जा रही हैं। यदि कांग्रेस मां-बेटा कंपनी है तो हमारे पास उससे भी बड़ी भाई-भाई पार्टी है।
प्रांतों में बाप-बेटा, बुआ-भतीजा, पति-पत्नी आदि पार्टियां काम कर रही हैं। यदि इनका नेतृत्व बदल भी जाए तो वह क्या कर लेगा ? उसके पास क्या कोई वैकल्पिक दृष्टि है ? देश के लिए कोई वैकल्पिक सपना है ? जनता को अपनी तरफ खींचने के लिए क्या उसके पास कोई नक्शा, कोई विचार, कोई नारा है। ये सब तो बड़ी बाते हैं। उनके पास तो नौटंकी करने की कला भी नहीं है, जैसे कि हमारे भाई नरेंद्र मोदी के पास है।
उनके पास गांधी, लोहिया और जयप्रकाश की तरह कोई चुंबकीय व्यक्तित्व भी नहीं है, जो नौटंकी पर भारी पड़ जाए। वे बस सत्तापक्ष की टाँग खींचना जानते हैं लेकिन उन्हें वह काम भी ठीक से नहीं आता। आशा की बस एक ही किरण है, विपक्ष के पास ! देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जाए, जनता के दुख-दर्द बढ़ते चले जाएं और तंग आकर जनता किसी के भी सिर पर ताज रखने के लिए तैयार हो जाए।
— डॉ. वेदप्रताप वैदिक