पीएम 2.5 से भी सूक्ष्म कण हवा में घुले, शरीर में प्रवेश से मास्क भी नहीं रोक सकता

पीएम 2.5 से भी सूक्ष्म कण हवा में घुले, शरीर में प्रवेश से मास्क भी नहीं रोक सकता
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प्रदूषण का स्तर पीएम 10 व 2.5 के आधार पर मापा जाता है, लेकिन अब पीएम 2.5 से भी सूक्ष्म कण हवा में घुल चुके हैं। ये पीएम 1.5 और पीएम 1 की श्रेणी में आते हैं। इन्हें अल्ट्राफाइन पार्टिकल्स कहा जाता है। ये इतने सूक्ष्म होते हैं कि ज्यादातर मास्क भी इन्हें सांस के जरिए शरीर में प्रवेश करने से रोक नहीं पाते। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली के ही एक अध्ययन में साबित हो चुका है कि पीएम 1 और पीएम 1.5 के कणों की वजह से लोगों को गठिया तक हो सकता है। एम्स के रुमेटोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. उमा कुमार के अनुसार, गठिया रोग में प्रदूषण के सहायक होने का खुलासा हाल ही में पूरे किए गए अध्ययन से हुआ है। दिल्ली की हवा में पीएम 2.5 से भी छोटे कण हैं, जो शरीर में घुलने के बाद लोगों के जोड़ों को कमजोर कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली में पिछले 10 या इससे अधिक सालों से रह रहे 350 स्वस्थ मरीजों पर यह अध्ययन किया गया था। इनमें प्रदूषण की वजह से करीब 70 लोगों में गठिया जैसी ऑटोइम्यून बीमारी के तत्व बढ़े पाए गए। लंग केयर फाउंडेशन ने भी पीएम 2.5 से छोटे कणों की हवा में मौजूदगी की पुष्टि की है। उसके अनुसार, अब हवा इतनी जहरीली हो चुकी है कि इसमें अल्ट्राफाइन पार्टिकल्स भी आ चुके हैं। इन्हें पीएम 1 भी कहा जाता है। ये अल्ट्राफाइन पार्टिकल्स सीधे रक्त में जाकर घुलते हैं और पूरे शरीर में फैल जाते हैं। इन्हें किसी तरह की दवा, योग या अन्य चीज से बाहर नहीं निकाला जा सकता। पीएम 1 को मापने के लिए अब तक कोई उपकरण तैयार नहीं हुआ है। पीएम 2.5 जब इतना खतरनाक साबित हो रहा है तो पीएम 1 उससे कहीं ज्यादा खतरनाक होगा। दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने हाल ही में कहा था कि 2.5 माइक्रोन (पीएम 2.5) से छोटे कण सीधे सांस के रास्ते हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इससे सांस लेने में दिक्कत, खांसी-बुखार और यहां तक कि घुटन महसूस होने की समस्या भी हो सकती है। नर्वस सिस्टम भी प्रभावित होता है। सिरदर्द और चक्कर के अलावा उल्टी इत्यादि के लक्षण मिलते हैं।

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